उत्तराखंड के इतिहास में आंदोलन और बलिदान का प्रतीक बन चुके बाबा मोहन उत्तराखंडी, जिनका असली नाम मोहन सिंह नेगी था, आज भी राज्य के लिए प्रेरणास्रोत हैं। पौड़ी गढ़वाल जिले के एकेश्वर ब्लॉक के बैठोली गांव में 1948 में जन्मे बाबा उत्तराखंडी ने उत्तराखंड आंदोलन के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।
सेना के बंगाल इंजीनियरिंग ग्रुप में क्लर्क के पद पर नौकरी करने के बाद भी उनका मन देशसेवा से अधिक अपने राज्य की सेवा में रमा रहा। 1994 में उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान रामपुर तिराहा कांड की वीभत्सता ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। इसके बाद उन्होंने आजीवन बाल न कटवाने, गेहुवे रंग के वस्त्र पहनने और दिन में केवल एक बार भोजन करने का संकल्प लिया। उसी के बाद वे बाबा उत्तराखंडी के नाम से विख्यात हुए। बाबा उत्तराखंडी अपना परिवार छोड़ कर उत्तराखंड आंदोलन में कूद गए। राज्य के बनने के तुरंत बाद उनका मोहभंग हो गया था। उनको अहसास हो गया था, केवल राज्य का नाम बदला है बाकि स्थितियां जस की तस हैं।
13 बार किया आमरण अनशन, गैरसैण को लेकर थे अडिग
राज्य आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए बाबा ने 13 बार आमरण अनशन किया। इनमें प्रमुख अनशन इस प्रकार रहे:
- 11 जनवरी 1997: उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर लैंसडाउन में आमरण अनशन।
- 16 अगस्त 1997: सतपुली में 12 दिन का आंदोलन।
- 1 अगस्त 1998: गुमखाल (पौड़ी) में 10 दिन का आंदोलन।
- फरवरी-जुलाई 2001: नंदाठौंक में गैरसैण राजधानी के लिए दो चरणों में आंदोलन।
- 31 अगस्त 2001: पौड़ी बचाओ अनशन।
- दिसंबर 2002 - फरवरी 2003: चांदकोट गढ़ी में गैरसैण के समर्थन में आंदोलन।
- अगस्त 2003: थराली में अनशन।
- फरवरी 2004: कोडियाबगड़ (गैरसैण) में आंदोलन।
- 2 जुलाई - 8 अगस्त 2004: बेनीताल में आमरण अनशन, जहां से बाबा ने अपने जीवन की अंतिम लड़ाई लड़ी।
38 दिन के अनशन के बाद शहादत
बेनीताल, जो गैरसैण के ठीक ऊपर स्थित है, बाबा ने रणनीति के तहत अपने अंतिम अनशन का स्थल चुना। 8 अगस्त 2004 को प्रशासन ने उन्हें जबरन उठाकर कर्णप्रयाग के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) में भर्ती कराया, जहां 9 अगस्त 2004 को सुबह उनकी मृत्यु हो गई।
बाबा उत्तराखंडी की मृत्यु के बाद स्थानीय जनता ने उनकी स्मृति में "राजधानी निर्माण संघर्ष समिति" का गठन किया और 9 अगस्त 2005 को पहली बार "शहीद स्मृति मेला" आयोजित किया गया, जो आज भी हर वर्ष आयोजित किया जाता है।
राजनीतिक मुद्दा बनकर रह गया गैरसैण का सपना
बाबा मोहन उत्तराखंडी का सपना था कि गैरसैण उत्तराखंड की स्थायी राजधानी बने। उन्होंने इसके लिए 38 दिन तक भूखे रहकर अपना जीवन तक न्यौछावर कर दिया। लेकिन दुखद यह है कि आज यह मुद्दा केवल एक राजनीतिक हथियार बनकर रह गया है। विभिन्न राजनीतिक दल इस मुद्दे का इस्तेमाल केवल चुनावी फायदे के लिए करते हैं।

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